प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2015 में शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) ने भारत की वित्तीय और सामाजिक संरचना में क्रांतिकारी बदलाव लाने का कार्य किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य छोटे उद्यमियों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों, महिलाओं, एससी/एसटी/OBC और अल्पसंख्यकों को सुलभ ऋण प्रदान कर स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना था। इस योजना ने जहां देश के लाखों लोगों की किस्मत बदली है, वहीं इसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से भी सराहना मिली है।
यूपीए युग की वित्तय सीमाएँ
प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद यूपीए सरकार के दौर की वित्तीय प्रणाली पर सवाल उठाए। उनका आरोप था कि पिछली सरकार की बैंकिंग प्रणाली चुनिंदा लोगों के लिए अनुकूल थी, जहां फोन और राजनीतिक संपर्क के आधार पर बड़े बिजनेसमैन को आसानी से लोन मिल जाते थे। वहीं, ग्रामीण और सामाजिक रूप से वंचित वर्ग को कठिन प्रक्रियाओं और दस्तावेजों की वजह से पीछे कर दिया जाता था। इससे NPA (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ) में भारी वृद्धि हुई और आम जनता को वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती थी।
मुद्रा योजना की शुरुआत और उद्देश्य
2015 में शुरू हुई इस योजना का उद्देश्य गरीब और छोटे व्यवसायियों को बिना गारंटी के ऋण देना था। योजना के तीन प्रमुख श्रेणियाँ बनाई गईं:
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शिशु: 50,000 रुपये तक का लोन
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किशोर: 50,000 से 5 लाख रुपये तक का लोन
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तरुण: 5 लाख से 10 लाख रुपये तक का लोन (तरुण प्लस: 10-20 लाख)
अब तक इस योजना के तहत लगभग 52 करोड़ लोन वितरित किए जा चुके हैं, जिनकी कुल राशि 32.61 लाख करोड़ रुपये है। यह भारत में लघु और सूक्ष्म उद्यमों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
रोजगार और महिला सशक्तिकरण में योगदान
2015 से 2018 के बीच मुद्रा योजना से सीधे तौर पर 1 करोड़ से अधिक रोजगार उत्पन्न हुए। खास बात यह रही कि इस योजना में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई। कुल लोन का लगभग 70% महिलाओं को मिला, जिससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई, बल्कि उन्हें समाज में नई पहचान भी मिली। महिला ऋण वितरण में 13% और जमा राशि में 14% की सालाना वृद्धि दर्ज की गई।
इसका सीधा असर सामाजिक सशक्तिकरण पर पड़ा। दलित, पिछड़े और अन्य वंचित वर्गों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिला। स्किल डेवलपमेंट में वृद्धि हुई और लोग अपने व्यवसाय को नई तकनीक के साथ आगे बढ़ाने लगे।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता
IMF ने 2017, 2019, 2023 और 2024 की रिपोर्ट्स में मुद्रा योजना की तारीफ की है। उन्होंने इसे महिला नेतृत्व वाले व्यापार और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने वाली एक सफल योजना बताया। SBI की रिपोर्ट के अनुसार, युवा लोन की हिस्सेदारी 2016 में 5.9% से बढ़कर 2025 में 44.7% हो गई है। MSME लोन 2014 में ₹8.51 लाख करोड़ से बढ़कर 2024 में ₹27.25 लाख करोड़ तक पहुँच गया है। 2025 तक इसके ₹30 लाख करोड़ पार करने की उम्मीद है।
जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी यह योजना बेहद सफल रही है। वहां अब तक 20,72,922 लोन स्वीकृत किए जा चुके हैं।
पर्यटन और होमस्टे उद्योग को बढ़ावा
बजट 2025 में मुद्रा योजना के अंतर्गत होमस्टे व्यवसाय के लिए 1500 करोड़ रुपये तक की बेबी लोन सुविधा दी गई है। इससे देश के पर्यटन सेक्टर में नई ऊर्जा का संचार हुआ है, विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में।
सकारात्मक सामाजिक बदलाव
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गरीबी में कमी: स्वरोजगार से आय में वृद्धि और गरीबी दर में गिरावट आई।
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नशा सेवन में कमी: आर्थिक रूप से सशक्त लोग नकारात्मक आदतों से दूर रहते हैं।
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फिनटेक क्रांति: UPI और DBT जैसी सेवाओं से बैंकिंग सुलभ हुई।
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आत्म-सम्मान में वृद्धि: लोन लेकर व्यवसाय शुरू करने से सामाजिक प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी हुई।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना भारत के विकास की कहानी का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन चुकी है। इसने न केवल लाखों लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त किया है, बल्कि सामाजिक संतुलन को भी मजबूत किया है। महिलाओं, युवाओं, वंचित वर्गों और ग्रामीण उद्यमियों को मुख्यधारा से जोड़ने वाली यह योजना आज एक आंदोलन का रूप ले चुकी है। भविष्य में यह योजना भारत को आत्मनिर्भर और समावेशी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करने में अहम भूमिका निभाएगी।