मुंबई, 04 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। जेल में बंद ईरान की नोबेल विजेता महिला अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार नरगिस मोहम्मदी को 3 हफ्ते के लिए जमानत पर रिहा किया गया है। नरगिस नवंबर 2021 से जेल में बंद हैं। उन्हें ईरान की सरकार ने मृत्युदंड और हिजाब के खिलाफ अभियान चलाने के लिए गिरफ्तार किया था। नरगिस को 2023 में महिलाओं की आजादी और उनके हक की आवाज उठाने के लिए नोबेल का पीस प्राइज दिया गया था। नरगिस की रिहाई की जानकारी उनके वकील मुस्तफा नीली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट कर दी है। पोस्ट में बताया गया है कि डॉक्टर्स की सलाह पर सरकार ने नरगिस की सजा को 3 हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया है। साथ ही उन्हें रिहा भी कर दिया गया है। नरगिस की सिर्फ 3 हफ्ते की रिहाई पर उनके परिवार वालों और समर्थकों ने नाराजगी जताई है। नरगिस के परिवार ने कम से कम 3 महीने की रिहाई की मांग की है।<br /> <br /> आपको बता दें, 52 साल की नरगिस को ईरान की इवान जेल में कैद रखा गया था। उन्हें 31 साल की जेल और 154 कोड़ों की सजा सुनाई थी। 2023 में नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में नरगिस का परिवारजन उनका नोबेल प्राइज लेने पहुंचे थे। इसके बाद ईरान की सरकार ने नरगिस को 15 महीने की अतिरिक्त सजा सुनाई थी। नरगिस का जन्म कुर्दिस्तान ईरान के जंजन शहर में 21 अप्रैल 1972 में हुआ। उन्होंने फिजिक्स की पढ़ाई की थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इंजीनियर के तौर पर काम किया। वो कॉलमनिस्ट भी रहीं। कई अखबारों के लिए लिखती थीं। 1990 के दशक से ही नरगिस महिलाओं के हक के लिए आवाज उठा रही थीं। 2003 में उन्होंने तेहरान के डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट सेंटर में काम शुरू किया। नोबेल प्राइज की वेबसाइट के मुताबिक, नरगिस मोहम्मदी को जेल में बंद कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की सहायता करने की कोशिश करने के आरोप में पहली बार 2011 में जेल हुई थी। पिछले साल जून में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में नरगिस ने कहा था कि उन्होंने 8 साल से अपने बच्चों को नहीं देखा है। उन्होंने आखिरी बार अपनी जुड़वा बेटियों अली और कियाना की आवाज एक साल पहले सुनी थी। नरगिस की दोनों बेटियां उनके पति तागी रहमानी के साथ फ्रांस में रहती हैं। दरअसल, तागी भी एक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट हैं। जिन्हें ईरान की सरकार ने 14 साल जेल की सजा दी थी। नरगिस ने एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम व्हाइट टॉर्चर है। ईरानी हुकूमत की तमाम कोशिशों के बावजूद, मोहम्मदी की आवाज दबाई नहीं जा सकी। जेल में रहते हुए उन्होंने साथी कैदियों की तकलीफ को दर्ज करना शुरू किया। आखिरकार कैदियों से बातचीत के पूरे ब्योरे को उन्होंने व्हाइट टॉर्चर किताब में उतार दिया। 2022 में उन्हें रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) के साहस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।