यूक्रेन युद्ध की तरह अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध भी अब थमने का नाम नहीं ले रहा। हालात दिन-ब-दिन और ज्यादा तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। ताज़ा घटनाक्रम में, अमेरिका ने चीन पर 245 प्रतिशत तक टैक्स लगाने का ऐलान कर दिया है। यह अमेरिका की अब तक की सबसे बड़ी टैरिफ कार्रवाई मानी जा रही है। जवाब में चीन ने पहले ही अमेरिका से आयात पर 125 फीसदी तक टैक्स लगाने की घोषणा कर दी थी।
ट्रंप की नीतियों की वजह से भारत भी चपेट में
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार नीति अब सिर्फ चीन तक सीमित नहीं रही। भारत समेत कई देशों को भी इस टैरिफ वॉर की आंच झेलनी पड़ रही है। ट्रंप का दावा है कि इस नीति के पीछे उद्देश्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है, लेकिन वैश्विक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे वैश्विक व्यापार को भारी नुकसान हो रहा है।
ट्रंप की इस नीति का अमेरिका के भीतर भी भारी विरोध हो रहा है। बीते सप्ताह अमेरिकी जनता ने सड़कों पर उतरकर टैरिफ नीति के खिलाफ प्रदर्शन किया। बावजूद इसके, ट्रंप अपनी रणनीति से पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे।
अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर की गंभीर होती स्थिति
अमेरिका ने चीनी निर्यात पर पहले 145 फीसदी टैक्स लगाया था। इसके जवाब में चीन ने अमेरिका से आने वाले माल पर 125 प्रतिशत तक टैरिफ लगा दिया। अब ट्रंप प्रशासन ने चीन के खिलाफ और सख्ती बरतते हुए इसे बढ़ाकर 245 प्रतिशत कर दिया है। यह कदम चीन पर आर्थिक दबाव बनाने की रणनीति के तहत उठाया गया है, लेकिन इसके गंभीर वैश्विक परिणाम हो सकते हैं।
व्हाइट हाउस ने जहां कुछ देशों को अस्थायी टैरिफ छूट दी है, वहीं चीन को लेकर ट्रंप का रुख लगातार आक्रामक बना हुआ है। चीन भी ‘जैसे को तैसा’ की नीति पर अड़ा हुआ है। अब सवाल उठता है कि यह व्यापार युद्ध आखिर कब तक चलेगा?
चीन की प्रतिक्रिया और WTO में मामला
अमेरिका की टैरिफ नीति के जवाब में चीन ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अमेरिका के खिलाफ मामला दायर कर दिया है। चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका की नीति को "अनुचित और गैरकानूनी" करार देते हुए कहा है कि चीन अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगा।
भारत और दुनिया पर असर
इस व्यापार युद्ध से भारत जैसे विकासशील देश भी प्रभावित हो रहे हैं। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में गिरावट, निर्यात पर असर, कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और विदेशी निवेश में मंदी जैसे प्रभाव देखे जा सकते हैं। भारत को इस संघर्ष में संतुलन बनाए रखने की चुनौती है, ताकि वह अमेरिका और चीन दोनों से अपने आर्थिक संबंधों को स्थिर रख सके।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप जहां अपनी व्यापार नीति को ‘देशभक्ति’ और ‘राष्ट्रहित’ की आड़ में परोस रहे हैं, वहीं चीन भी अपने रुख को "राष्ट्रीय स्वाभिमान" से जोड़कर पेश कर रहा है। दोनों देशों के नेताओं का हठधर्मी और टकरावपूर्ण रवैया इस व्यापार युद्ध को जल्द खत्म नहीं होने देगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं किस तरह के समझौते पर पहुंचती हैं—या फिर यह संघर्ष वैश्विक मंदी का कारण बनता है? भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें ‘ये जंग कब तक चलेगी?’ इस सवाल पर टिकी हुई हैं।